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Showing posts from January, 2019

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, एक आदर्श देशभक्त

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नेता जी सुभाष चन्द्र बोस  जी का जन्म 23 जनवरी 1897 (दोपहर 12.10 बजे) उड़ीसा डिवीजन, बंगाल प्रांत में, प्रभाती दत्त बोस और जानकीनाथ बोस, एक कायस्थ परिवार से थे। वह अपने इस 14 बच्चों वाले परिवार में नौवें स्थान पर थे। उन्हें जनवरी 1902 में अपने भाइयों और बहनों की तरह कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल (वर्तमान में स्टीवर्ट हाई स्कूल) में पढ़ने भेजा गया था। उन्होंने इस स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखी, यहाँ उनके साथी छात्रों द्वारा उनका उपहास किया गया क्योंकि वह बहुत कम बंगाली जानते थे। जिस दिन सुभाष को इस स्कूल में भर्ती कराया गया, हेडमास्टर बेनी माधब दास समझ गए कि उनकी प्रतिभा कितनी विशिष्ट और वैज्ञानिक है। 1913 में मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने के बाद, उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, वहां 16 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण के कार्यों को पढ़ने के बाद  उनकी शिक्षाओं से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने महसूस किया कि उनका धर्म उनकी पढ़ाई से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था। उन दिनों, कलकत्ता में अंग्रेजों ने अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर भारतीयों पर आपत्तिजन...

कल्पवासी

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कल्पवास कल्पवास का अर्थ है संगम के तट पर निश्चित समय के लिए निवास बनाकर स्नान ध्यान करते हुए वेदों का ज्ञान अर्जित करना। प्राचीन काल में जब तीर्थराज प्रयाग में ऋषि मुनि यहां तपस्या करते थे तब से ही उन्होंने गृहस्थियों के लिए यहां पर कल्पवास का नियम बनाया है। कल्पवास की दिनचर्या शीतल मन के साथ प्रेम पूर्वक भक्ति भाव से रहते हुए अन्न का सेवन एक बार ही करना तथा शेष अन्न का दान करने के उपयोग में लाना। सुबह शाम दो बार गंगा स्नान कर गंगा जी की पूजा करना। अधिक से अधिक अपने सदगुरु, भगवान का ध्यान करना तथा माघ महात्म सुनना। पर्ण कुटी में निवास करना।

आप स्वर्णिम भारत को कैसे देखना चाहते हैं ?

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आपका स्वर्णिम✌ भारत यहां आप अपने स्वर्णिम भारत की तस्वीर को अपने शब्दों में कमेंट करें।

सूर्य नमस्कार के मंत्र

सूर्य नमस्कार के बारह मंत्र ॐ मित्राय नमः। ॐ रवये नमः। ॐ सूर्याय नमः। ॐ भानवे नमः। ॐ खगाय नमः। ॐ पूष्णे नमः। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः। ॐ मरीचये नमः।  ॐ आदित्याय नमः। ॐ सवित्रे नमः। ॐ अर्काय नमः। ॐ भास्कराय नमः।

मकर संक्रांति 2079 विक्रम संवत (2023) स्पेशल

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मकरसंक्रांति सम्पूर्ण भारतवर्ष में अलग अलग तरीकों द्वारा मकरसंक्रांति का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार माघ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि (15 तारीख) को मनाया जा रहा है। "जब सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य के इस गतिशीलता को ही मकरसंक्रांति कहा जाता है। विविधता में एकता का जश्न " मकरसंक्रांति के अन्य नाम खिचड़ी,मकर संक्रमण, ताई पोंगल, माघी, शिशुर सेक्रांत,  भोगाली बिहू, उत्तरायण, पौष संक्रांति, माघी संक्रांति, दही चूरा, पेड्डा पांडुग (Pedda Panduga), मकर विलक्कु(Makara Vilakku), घुघुतिया, सोंगकरन, मोहा संग्रकान, उझवर तिरुनल, पी मा लाओ एवम् थिंयान आदि हैं।" पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि इस दिन गंगा जी भगीरथ का पीछा करते करते सागर में जा मिली थी। कहा भी जाता है कि "सब तीरथ बार बार गंगासागर एक बार" क्योंकि साल में सिर्फ इस दिन ही गंगासागर में स्नान दान के लिए लाखों की संख्या में भीड़ होती है इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता ...

लोहड़ी

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लोहड़ी का अर्थ लोहड़ी को तिलोड़ी भी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ से बनी रोड़ी) को मिलाने से बना है, जो धीरे धीरे बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही व लोई भी कहा जाता है। जश्न मनाने का अनोखा भारतीय उत्सव लोहड़ी एक त्यौहार है, जो आनंद और खुशियां लाती है। लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाता है और वर्ष 2022 में यह त्यौहार 13 जनवरी को मनाया जा रहा है। पंजाब और हरियाणा में इसकी काफी धूम होती है। सिंधी समाज भी मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व इसे ‘लाल लोही’ के रूप में मनाता है। लोहड़ी की परंपरा "लोहड़ी के त्योहार के अवसर पर जगह-जगह अलाव जलाकर उसके आसपास भांगड़ा क‍िया जाता है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है।"   उत्सव के दौरान वैसे तो घर-घर जाकर लोक गीत गाने की परंपरा है।  बच्चों को इस दिन गजक, गुड़, मूंगफली एवं मक्का आदि दिया जाता है, जिसे लोहड़ी भी कहा जाता है। आग जलाकर लोहड़ी को सभी में वितरित किया जाता है पुरुष भांगड़ा तो महिलाएं गिद्धा नृत्य करती हैं।  रात में स...

कुम्भ नगरी प्रयागराज

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दिव्य कुम्भ कुंभ नगरी प्रयागराज में आप सभी का स्वागत है।   हर 12 साल में माघ मेला कुंभ मेले में बदल जाता है। लाखों भक्त नदियों के किनारे शिविर लगाते हैं और रोजाना गंगा जी के पवित्र जल में स्नान करते हैं, जबकि धार्मिक संगठनों और संप्रदायों ने इस अवधि के दौरान नदी के किनारे अपने शिविर स्थापित किए हैं। यह मेला 2079 विक्रम सम्वत (2023 ग्रेगोरियन वर्ष) में पौष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (06 जनवरी) से शुरू होगा और फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (18 फ़रवरी) को महा शिवरात्रि के दिन समाप्त होगा। इस बार प्रमुख स्नान पर्व पर माघ मेले में 06 जनवरी को पौस पूर्णिमा,  15 जनवरी को मकर संक्रांति, 21 जनवरी को मौनी अमावस्या,  26 जनवरी को बसंत पंचमी,  05 फरवरी को माघ पूर्णिमा एवम् 18 फरवरी को महा शिवरात्रि पर असंख्य जनसमूह प्रयागराज के माघ मेले क्षेत्र में संगठित होगा।  Click Here  for best saving plans with guaranteed सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे इस माघ मेले में  प्रयागराज के गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र तट पर हर साल यह मेला लगता है...