मकर संक्रांति 2079 विक्रम संवत (2023) स्पेशल
मकरसंक्रांति
सम्पूर्ण भारतवर्ष में अलग अलग तरीकों द्वारा मकरसंक्रांति का पर्व बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार माघ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि (15 तारीख) को मनाया जा रहा है। "जब सूर्य धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य के इस गतिशीलता को ही मकरसंक्रांति कहा जाता है।
विविधता में एकता का जश्न
" मकरसंक्रांति के अन्य नाम खिचड़ी,मकर संक्रमण, ताई पोंगल, माघी, शिशुर सेक्रांत, भोगाली बिहू, उत्तरायण, पौष संक्रांति, माघी संक्रांति, दही चूरा, पेड्डा पांडुग (Pedda Panduga), मकर विलक्कु(Makara Vilakku), घुघुतिया, सोंगकरन, मोहा संग्रकान, उझवर तिरुनल, पी मा लाओ एवम् थिंयान आदि हैं।"
पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि इस दिन गंगा जी भगीरथ का पीछा करते करते सागर में जा मिली थी। कहा भी जाता है कि"सब तीरथ बार बार गंगासागर एक बार"क्योंकि साल में सिर्फ इस दिन ही गंगासागर में स्नान दान के लिए लाखों की संख्या में भीड़ होती है इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है।
मकरसंक्राति की विभिन्न परंपराएं
उत्तर प्रदेश व बिहार राज्य में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान करने का अत्यधिक महत्व होता है। इसके अतिरिक्त इस दिन उड़द, चावल, काला तिल, चिवड़ा, गाय व कम्बल आदि दान करने का अपना अलग ही महत्त्व है।
महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं कपास, तेल, नमक, तिल गूल का हलवा, रोली और हल्दी बांटते हुए कहती हैं कि तिल गुड लो और मीठा मीठा बोलो।
तमिलनाडु के पोंगल का अपना एक अलग ही सुंदरता है, वहां पर चार दिन तक पोंगल मनाया जाता है। पहले दिन सफाई करके सबकुछ जलाने की प्रथा है दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा तथा तीसरे दिन स्नान करके मिट्टी के बर्तन में खीर बनाने का प्रचलन है जिसे ही पोंगल बोला जाता है। और इस पोंगल को सभी बांट के खाते हैं।
इस दिन माताओं द्वारा अपनी बेटी के घर उड़द, चावल, तिल के लड्डू, ढूंढी आदि भेजने की प्रथा है। इस प्रकार यह पर्व भारत वर्ष की विविधता में एकता को दर्शाते हुए भारतीय संस्कृति को चित्रित करता है।
गुजरात में इस पर्व को दो दिन मनाने का प्रचलन है। यहां पर एक दिन पतंग उड़ाने की प्रथा बहुत ही प्रसिद्ध है
उत्तराखंड में घुघुतिया के नाम से प्रसिद्ध इस त्यौहार पर उत्तरायणी का मेला जन-सामान्य में बहुत ही लोकप्रिय है यह मेला नदियों के किनारे लगता है और सभी जनसमुदाय द्वारा सूर्योदय के पूर्व ही गंगा स्नान कर दान कार्य का प्रचलन है। CLICK HERE for best saving plans with guaranteed
नेपाल में माघे संक्रांति व माघी को बहुत ही प्रमुख उत्सव के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। ज्यादातर लोग नदियों के संगम में लाखों की संख्या में एकत्र होकर स्नान दान करते हैं।
इस दिन गंगा स्नान के पश्चात् गंगा तट पर दान देने को महास्नान की संज्ञा दी गई है, इसीलिए आज के दिन गंगा तट पर जगह जगह पर मेले का आयोजन भी किया जाता है, इनमें से गंगासागर तथा तीर्थराज प्रयाग के कुम्भ मेला का विशेष महत्व है।
पुराणों के अनुसार शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं और सूर्य देव के पुत्र भी, अतः ऐसा माना जाता है कि सूर्य इस दिन अपने पुत्र से मिलने जाते हैं क्योंकि आज सूर्य का धनु से मकर राशि में परिवर्तन होता है।
पुराणों के अनुसार उत्तरायण को देवों का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि मानी जाती है, यही कारण है कि भीष्म पितामह ने अपना शरीर उत्तरायण में छोड़ा था। और इसीलिए इस दिन जप, तप, ध्यान, स्नान, तर्पण व श्राद्ध की विशेष महत्व है।
पंचांग में इस त्यौहार को सूर्य की गति पर निर्धारित किया जाता है अन्यथा सभी पर्व को चंद्रमा की गति पर निर्धारित किया जाता है।
इस त्यौहार को अंधेरे से उजाले की ओर चलने का प्रतीक माना जाता है क्योंकि सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। और इसीलिए प्रायः लोग इस दिन सूर्य नमस्कार के मंत्र का उच्चारण करते हुए गंगा जी के डुबकी लगाते हैं।
किसान भाइयों द्वारा इस दिन अपने अपने उपज के लिए भगवान को आभार प्रकट कर उनका आशीर्वाद लेना आम बात है।
हम में से ज्यादातर लोग हमेशा से 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते आ रहे हैं इसलिए उनको इस बार मकर संक्रांति का 15 जनवरी को होना कुछ विचित्र लग रहा है। लेकिन अब यह 2137 विक्रम सम्वत (2081) तक 15 जनवरी को ही होगा।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि - सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश (संक्रमण) का दिन "मकर संक्रांति" के रूप में जाना जाता है।
ज्योतिषविदों के अनुसार प्रतिवर्ष इस संक्रमण में 20 मिनट का विलंब होता जाता है।
इस प्रकार तीन वर्षों में यह अंतर एक घंटे का हो जाता है तथा 72 वर्षो में यह फर्क पूरे 24 घंटे का हो जाता है।
इन बातों को जानकार आपको अपने पूर्वजों पर गर्व करना चाहिए कि - हमारे पूर्वज ब्रह्माण्ड को बहुत पहले ही पढ़ चुके थे।
जय हो सनातन संस्कृति की
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