कोरोना की सामाजिक सीख
इलाहाबाद के एक गांव में शाम को जो चर्चा हो रही थी वह कोरोनावायरस पर ही आधारित थी.. कोई कह रहा था कि कोरोना हैजा और प्लेग की तरह ही एक महामारी है तो कोई कह रहा था कि यह चीन से आई बीमारी है , जैसे चीन समान बनाता है वैसे ही बीमारी भी और कुछ विद्वान यह भी कह रहे थे कि यह विकसित देशों, समाजों ,सभ्याताओं से संक्रमण कर हम लोगों तक पहुंच रही है ।इन सभी की बातों ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया की कोरोनावायरस की सामाजिक सीख क्या हो सकती है। कोरोना से हम सभी डरे हुए हैं और उसके लिए सजग भी हैं। एक तरफ हम दुनिया में कोरोना के कारण बढ़ती मौतों से भयभीत हैं तो वहीं दूसरी तरफ उसका मजाक भी बना रहे हैं। आधुनिकता ने एक तरफ हमारी जीवन शैली आसान कर दी है तो वहीं दूसरी तरफ भारी संकट भी खड़ा कर दिया है।यह संकट विज्ञान के गर्व को तोड़ रहा है। एक तरफ जहां हम globalisation से खुश हुए तो वहीं दूसरी ओर globalisation के कारण मृत्यु का भय भी हम तक आ रहा है। विज्ञान बेबस है , मंदिर, मस्जिद, चर्च सब बंद कर दिए गए हैं।योग और अध्यात्म में भी इसका कोई उपाय नहीं मिल रहा है। पूरब और पश्चिम जिन्हें विकल्प की नजर से देखा जाता था, सब बेबस नजर आ रहे हैं। आर्थिक विकास दर के नीचे जाने की संभावना जताई जा रही है, पर्यटन, होटलों पर ताले लटकते नजर आ रहे हैं।
मानवता ने इन भय के कारणों को खुद उत्पन्न किया है। उसने अपनी धरती अपने पर्यावरण की उपेक्षा की तथा अधिक सुख सुविधा की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है ,जिस कारण हम मानवता की ऐसी त्रासदी देख रहे हैं। हमारी पारंपरिक संस्कृति में धैर्य , विनम्रता और सहजता का महत्व था पर आज आधुनिकता ने हमें इतना गतिमान बनाया है कि हमें जगह जगह पर ठोकर लग रहें हैं। ऐसी भयावह स्थिति से हमें हमारी संस्कृति, सभ्यता ही बचा सकती है पर आज स्थिति हमारे हाथ से निकल गई है।
मानवता में हालांकि अपने संकटों के समाधान की अदभुत क्षमता है , वह सब कुछ खो कर भी खुद को फिर से रच लेती है,, मानवता की इसी शक्ति पर हमें विश्वास करना चाहिए।
मानवता ने इन भय के कारणों को खुद उत्पन्न किया है। उसने अपनी धरती अपने पर्यावरण की उपेक्षा की तथा अधिक सुख सुविधा की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है ,जिस कारण हम मानवता की ऐसी त्रासदी देख रहे हैं। हमारी पारंपरिक संस्कृति में धैर्य , विनम्रता और सहजता का महत्व था पर आज आधुनिकता ने हमें इतना गतिमान बनाया है कि हमें जगह जगह पर ठोकर लग रहें हैं। ऐसी भयावह स्थिति से हमें हमारी संस्कृति, सभ्यता ही बचा सकती है पर आज स्थिति हमारे हाथ से निकल गई है।
मानवता में हालांकि अपने संकटों के समाधान की अदभुत क्षमता है , वह सब कुछ खो कर भी खुद को फिर से रच लेती है,, मानवता की इसी शक्ति पर हमें विश्वास करना चाहिए।
यथार्थ है।
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