पवित्रता का प्रतीक होली


पाप सहचरी होलीका के दहन और भक्त प्रहलाद के संरक्षण के पर्व होली की अनन्त ईश्वरीय शुभकामनाएं एवं बधाई

होली के त्यौहार का प्रारंभ होलिका दहन से होता है।पौराणिक आख्यानों के अनुसार महर्षि कश्यप और दिति की संतान हिरण्यकश्यपु (स्वर्णिम वस्त्र धारण करने वाला ) अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करने के कारण भगवान विष्णु से शत्रुता रखता था। सतयुग से अब तक की यह विडम्बना रही है कि जब भी कोई देव, मानव, दानव या राक्षस अपने युग में सर्वशक्तिमान (बल एवं वैभव में) हो जाता है, तो वह अपने को ईश्वर तुल्य या ईश्वर ही मनवाने पर अड़ जाता है। हिरण्यकश्यप ने भी अपने को ईश्वर घोषित कर दिया था। सामान्यतः पूरी प्रजा ने उसे (भयवश) ईश्वर मान भी लिया था, और उसकी इच्छा अनुसार उसकी पूजा भी करने लगे थे, परंतु उसके पुत्र प्रहलाद ने यह बात स्वीकार नहीं की। अंततः हर मदांध व्यक्ति की तरह हिरण्यकश्यप ने भी अपनी बात ना मानने पर प्रहलाद को क्रूर प्रताड़ना और अंततः मृत्यु देने का निर्णय किया। ( क्योंकि क्रूर शासक का अहंकार ही उसका सबसे निकटवर्ती पुत्र होता है जिसका पोषण वह अपने पुत्र से अधिक करता है)। जैसा कि हम सभी जानते हैं उसकी बहन होलिका अपनी अग्नि प्रतिरोधक विशिष्ट क्षमता के कारण प्रहलाद के दहन की योजना बनाती है। भगवान विष्णु प्रहलाद की रक्षा करते हैं, और होलिका जलकर नष्ट हो जाती है।


हिरण्यकश्यप एवं होलिका के क्रूर मन्तव्य के विफल होने और होलिका के भस्मीभूत हो जाने का उल्लास का स्मरण रंगोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।प्रकृति भी बासंतिक छटा से इस उत्सव को मादकता से सराबोर कर देती है ।

भारतीय जीवन शैली एवं संस्कृति में प्रतीकों का बहुत महत्व है। छोटे-छोटे प्रतीकों के माध्यम से विराट संकल्पना को अवधारित कर जनमानस  के अवचेतन में उसे संस्थापित किया जाता है।होलिका की अग्नि में अनेक वस्तुओं का दहन किया जाता है, जिनमें कुछ वस्तुएं अत्यंत उपयोगी और कुछ अनुपयोगी (त्याज्य) भी होती हैं। होलिका दहन की प्रक्रिया से  पर्यावरण की शुद्धि भी अभीष्ट है।

सूक्ष्म और आध्यात्मिक दृष्टि से होलिका में सामूहिक रुप से(शीत ऋतु एवं निशा के प्रतीक) आलस्य, अविवेक, ईर्ष्या, द्वेष क्रोध, लोभ, मूर्खता आदि का हवन कर इस से मुक्ति पाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही इस आहुति से आरोग्य, ऐश्वर्य, दुःख-निवृत्ति, जगत कल्याण और आध्यात्मिक- आस्था स्थापना के साथ ही लौकिक और पारलौकिक उन्नयन की भी कामना की जाती है। विनाशकारी और विध्वंसक शक्तियों की सहचरी होलिका का अग्नि में प्रज्वलित होना और नारायण के भक्त प्रह्लाद का बिना किसी सुरक्षा कवच के भी सकुशल बच जाना, ईश्वरीय शक्तियों द्वारा सत्य की संरक्षा के संकल्प को पुनर्स्थापित करता है।

सामूहिक उल्लास, ऊर्जा, उन्नयन, समरसता, सौहार्द, ज्ञान, शांति, प्रेम, सुख, पवित्रता में वृद्धि के साथ ही द्वेष, दम्भ, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा आदि, के त्याग के प्रतीक स्वरूप होली का त्यौहार हम सब में अपने प्रत्यक्ष और परोक्ष लक्षित उद्देश्यों की स्थापना कर हम सबके लिए कल्याणकारी हो।


भगवान नारायण के नरसिंह अवतार से यही प्रार्थना है कि वह इस युग के अति बलवान हिरण्यकश्यपों का संहार कर, हम सब में उच्च आदर्शों को स्थापित करने वाले प्रहलादों का संरक्षण करें, जिसके लिए यह त्यौहार सनातन से प्रचलित है। 
अपने तप और बुद्धि कौशल से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लगभग अमृत्व का वर प्राप्त करने पर भी हिरण्यकश्यपु अमर नहीं हो पाया। उसके अहंकार और दम्भ का अंत हमें आश्वस्त  करता है किसी का भी (वह चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो) दम्भ एवं अहंकार क्षणभंगुर ही है, और भक्त प्रहलाद जैसे अशक्तों निःशक्तों की निडरता का पुरस्कार एवं संरक्षण भगवान स्वयं करते है।भगवान हम सब को भक्त प्रह्लाद की भांति सत्य और ईश्वर आग्रही बना कर हिरण्यकश्यपों के भय से मुक्त करें ।

होली हम सबके लिए शुभ एवं मंगलमय हो। रंगों, उमंगों के पर्व होली की आप सभी को कोटिशः ईश्वरीय शुभकामनाएं एवं बधाई।

आपके कॉमेंट्स वंदनीय होंगे💐🕉

Comments

  1. शुभम् करोति कल्याणं
    आरोग्यं सुख सम्पदाम्।

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