मानसिक शक्ति - संकल्प
आंतरिक बल
विचार तरंगे थोड़ा आगे बढ़ कर विश्व के परमाणुओं में फैल जाती हैं और कुछ ही सेकेंड्स में प्रतिक्रिया सहित वापिस लौट आती हैं।
परावर्तित अर्थात जो तरंगे लौट कर आती हैं वे अपने में उसी तरह के और विचार लेकर लौटती हैं।
जब कोई बडबडाता है तो उसी तरह के विचार दौड़े चले आते हैं।
जब कोई करुणा और मीठे शब्द बोलता है तो वैसे ही मिठास के कोमल विचार मस्तिष्क में चले आते हैं।
बोला और सोचा हुआ प्रत्येक शब्द एक शक्ति है, मंत्र है।
इस लिये सम्भल कर और बहुत ही मीठा बोलना चाहिये।
कड़वा, तीखा और निरर्थक की बकवाद की प्रतिक्रिया वैसे ही तत्वों को बढा देती है। जिस से मन में अशांति पैदा हो जाती है।
किसी शब्द को मन में सोचा जाये तो वह एक विशेष गति से आकाश के परमाणुओं के बीच बढ़ता हुआ उस शक्ति तक पहुँचता है जिस को दिमाग में रखा गया है, भगवान, देवता या और कोई सिद्ध पुरुष।
संकल्प को दोहराने से, संकल्प को शक्ति मन से मिलती है। इस शक्ति के द्वारा जो शब्द दोहरा रहे हैं वह विद्युत तरंगों में बदल जाते हैं।
यह विद्युत तरंगे ईष्ट से तेज़ी से बढ़ते हुए क्रम में टकराती हैं। टकराते ही उस ईष्ट से अदृश्य सूक्ष्म परमाणु मंद गति से परावर्तित होने लगते हैं, उनकी दिशा ठीक उल्टी होती है। सूक्ष्म और स्थूल दोनो तरह के परमाणु साधक की तरफ़ दौड़ पड़ते हैं और साधक को शारीरिक और मानसिक लाभ पहुंचाते हैं।
जितनी अधिक एकाग्रता होगी उतने ही तीव्रता से परमाणु परावर्तित होंगे।
राजयोग में अनुभूति होने का कारण मन में भगवान के गुणों को सिमरण करने वाले विचार हैं जो भगवान से टकराते हैं और लौटते हुए भगवान की दिव्य शक्तियां लाते हैं।
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