महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह

वशिष्ठ नारायण सिंह को CM नीतीश ने दी श्रद्धांजलि, लेकिन PMCH नहीं दे सका एंबुलेंस

दुनिया के महान गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह नही रहे-पार्थिव देह डेढ़ घंटे स्ट्रेचर पर रखी रही, एंबुलेंस वाले ने 5 हजार रूपए मांगे

महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह (Mathematician Vashisth Narayan Singh) का गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद पटना (Patna) में निधन (Death) हो गया। वशिष्ठ नारायण सिंह की मौत के बाद पटना के पीएमसीएच (PMCH) प्रशासन की बड़ी लापरवाही सामने आई है। वशिष्ठ बाबू के निधन के बाद अस्पताल प्रबंधन द्वारा उनके परिजनों को शव (Dead Body) ले जाने के लिए एंबुलेंस (Ambulance) तक नहीं मुहैया कराया गया। इस महान विभूति के निधन के बाद उनके छोटे भाई ब्लड बैंक के बाहर शव के साथ खड़े रहे।

निधन के बाद पीएमसीएच प्रशासन द्वारा केवल डेथ सर्टिफिकेट (मृत्यु प्रमाणपत्र) देकर पल्ला झाड़ लिया गया। इस दौरान जब वशिष्ठ नारायण सिंह के छोटे भाई से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम अपने पैसे से अपने भाई का शव गांव ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि मेरे भाई के निधन की खबर के बाद से न तो कोई अधिकारी आया है और न ही कोई राजनेता। वशिष्ठ नारायण सिंह के छोटे भाई ने कैमरे के सामने रोते हुए कहा कि अंधे के सामने रोना, अपने दिल का खोना। उन्होंने कहा कि मेरे भाई के साथ लगातार अनदेखी हुई है। जब एक मंत्री के कुत्ते का पीएमसीएच में इलाज हो सकता है तो फिर मेरे भाई का क्यों नहीं।

परिचय

👆मात्र 19 साल की उम्र में मैथ से भारत के सबसे युवा पीएचडी धारक का ख़िताब इनके नाम रहा ...बिहार के भोजपुर जिले की मिट्टी में पैदा हुआ एक नायाब गणितज्ञ.... मैथ के हर इक्वेशन को कई तरीके से सॉल्व करने में महारथ हासिल थी इनको...जी इनका नाम था स्वर्गीय वशिष्ठ नारायण सिंह....

60 के दशक में कैलिफोर्निया से एक गणितज्ञ जॉन केली भारत आते है.....इनके बारे में जॉन को पता चलता है ...और ये फ़िर मिलने जाते है... कहा जाता है जॉन इनको चैलेंज करते है पूरी तैयारी के साथ ...इनको बहुत से मैथ के इक्वेशन देते है हल करने के लिए ...जिसे वशिष्ठ जी बहुत कम समय मे अलग अलग तरीके से सॉल्व कर के दे देते हैं।.... जौहरी को हीरे की परख हो जाती है ....... केली इनको यूएस अपने साथ चलने का प्रस्ताव रखते है.... जिसे वशिष्ठ जी मान लेते है....

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में cycle vector space theory से एक बार और पीएचडी करते हैं... इसके बाद इनको नासा से ऑफर मिलता है और ये जॉइन कर लेते हैं... कहा जाता है नासा के अपोलो मिशन के दौरान कुछ तकनीकी खराबी की वजह से 30 कम्प्यूटर ठप्प हो जाते हैं.... इसी दौरान वशिष्ठ जी सारी कैलकुलेशन पेन से करते हैं... और मिशन आगे बढ़ता है ... जब सारे कंप्यूटर दुबारा से शुरु होते है ...तो इनकी की हुई कैलकुलेशन और सारे कंप्यूटर की कैलकुलेशन 100 प्रतिशत एक्यूरेसी से मैच कर जाती है .... इसके बाद एक 24 वर्षीय भारतीय वैज्ञानिक का पूरे अमेरिका में जो डंका बजता है जिसकी गूंज पूरा विश्व मे सुनाई देती है..... यूएस गवर्नमेंट इनको परमानेंट नागरिकता का आफर देती है .... और नासा में परमानेंट एक बड़े ओहदे की पेशकश करती है ..... जिसे ये ठुकरा देते है ....और अपने साथ 20 बक्से (किताबों से भरे) लेके भारत वापस आ जाते है ......(काश वो वंही रह जाते).....इनकी जिंदगी का बहुत डरावना अध्याय यँहा भारत मे शुरू होता है......

यँहा आके ये आईआईटी कानपुर और आईआईटी कलकत्ता में बतौर प्रोफ़ेसर अपनी सेवा देने लग जाते है....यँहा आते ही इनके लाख मना करने के बाद इनके पिताजी इनकी शादी एक बहुत बड़े रसूख वाले घर मे कर देते है ....ये इस समय एक थीसिस पे काम कर रहे होते है जो कि इनकी अब तक कि की गई सारी रिसर्च थी और जिसके बारे में ये कहा जाता था कि इनकी थीसिस न्यूटन के रिलेटिव सिद्धान्त और ग़ौस के थ्योरी को चैलेंज कर रही थी.....लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था ...अपनी बीवी को समय ना देने की वजह से इनका और इनकी वाईफ का हमेशा झगड़ा रहता था....ये घण्टो अपने को कमरे में बंद कर अपनी थीसिस पूरी करने में लगे रहते जो कि बिल्कुल समाप्ति के कगार पे थी....एक दिन इनकी गवार वाईफ चिढ़ के इनकी सारी थीसिस में आग लगा देती है....इसको जरा भी अंदाजा नही था इसने कितने बड़े खजाने को अग्नि दे दी.....इसकी वजह से वरिष्ठ जी को अचानक नर्वस ब्रेक डाउन होता है ....और ये अपना मानसिक संतुलन खो बैठते है..... शिजोफ्रेनिया डिटेक्ट होता है लेकिन सुधार नही होता कारण बढ़िया मेडिकल फैसिलिटी का ना मिल पाना .....अपनी जिंदगी का 11 साल ये हीरा पागलखाने में बिताता है.....वँहा भी ये जिस कमरे में थे उस कमरे की पूरी दीवार मैथ के इक्वेशन और फार्मूले से भरी रहती ....बीमारी में भी ये बस चाक लेने के एवज में कई फार्मूले सॉल्व कर देते...असल मे बाहर से या विदेश से जो लोग इनसे मिलने आते थे...इनको पता चला कि बीमारी में भी ये मैथ भूले नही है....लेकिन जो भी इनसे मिलने आता उससे बस ये चॉक मांगते .....और लोग इनको चॉक देके अपनी समस्या सॉल्व करा लेते थे....यँहा से इनकी परिवार इनको 11 साल बाद निकालती है ....लेकिन कुछ समय बाद अचानक ये गायब हो जाते है और 1989 से 1993 तक एक गुमनामी भरी जिंदगी जीते है....5 साल बाद इनके भाई को ये एक रोड के किनारे पड़े मिलते है.....इनका भाई इनको घर लेके जाता है......

आज इनका 77 साल की उम्र में पटना के एक सरकारी हॉस्पिटल में स्वर्गवास हो गया....कितना पत्थरदिल ये सिस्टम या समाज जिसकी वजह से इनकी लाश पूरे दो घण्टे बाहर लावारिस की तरह पड़ी रही बस एम्बुलेंस के इंतजार में.....


इतना इंटेलिजेंट माइंड जो सदियों में एक बार पैदा होता है उसे हमारे समाज और देश के सिस्टम ने बर्बाद करके रख दिया ....नर्वस ब्रेक डाउन कोई बहुत बड़ी बीमारी नही थी ...100 प्रतिशत इसका इलाज संभव था... अगर सरकार इनको उचित समय पे इलाज मुहैया करा देती....काश वशिष्ठ नारायण जी अमेरिका से वापस ही नही आते... तो आज एक महान गणितज्ञ का सितारा विश्व मे जगमगा रहा होता.....भगवान इनकी आत्मा को शांति दे...🙏🙏🙏🙏

2 अप्रैल 1946 : जन्म
1958 : नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान
1963 : हायर सेकेंड्री की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान
1964 : इनके लिए पटना विश्वविद्यालय का कानून बदला। सीधे ऊपर के क्लास में दाखिला बी.एस-सी.आनर्स में सर्वोच्च स्थान
8 सितंबर 1965 : बर्कले विश्वविद्यालय में आमंत्रण दाखिला
1966 : नासा में
1967 : कोलंबिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिक्स का निदेशक
1969 : द पीस आफ स्पेस थ्योरी विषयक तहलका मचा देने वाला शोध पत्र (पी.एच-डी.) दाखिल
 बर्कले यूनिवर्सिटी ने उन्हें जीनियसों का जीनियस" कहा
1971 : भारत वापस देशभक्ति का कीड़ा काटा
1972-73: आइआइटी कानपुर में प्राध्यापक, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च (ट्रांबे) तथा स्टैटिक्स इंस्टीट्यूट के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन
8 जुलाई 1973 : शादी
जनवरी 1974 : विक्षिप्त, रांची के मानसिक आरोग्यशाला में भर्ती
सिज़ोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित
1978: सरकारी इलाज शुरू
जून 1980 : सरकार द्वारा  इलाज का पैसा बंद
1982 : डेविड अस्पताल में बंधक
नौ अगस्त 1989 : गढ़वारा (खंडवा) स्टेशन से लापता
7 फरवरी 1993 : डोरीगंज (छपरा) में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर फेंके गए जूठन में खाना तलाशते मिले
तब से रुक-रुक कर होती इलाज की सरकारी/प्राइवेट नौटंकी.
पिछले दो दिन से : पीएमसीएच के आईसीयू में
(खबर है कि जान बची हुई है। जल्द रिलीज हो जाएंगे)
बहुत ही मामूली आदमी का बेटा वशिष्ठ से आखिर क्या गलती हुई कि आज इस सिचुएशन में हैं?
सिर्फ और सिर्फ यही कि उनके पोर-पोर में देशभक्ति घुसी थी। अमेरिका का बहुत बड़ा ऑफर ठुकरा कर अपनी मातृभूमि (भारत) की सेवा करने चले आए। और भारत माता की छाती पर पहले से बैठे सु (कु) पुत्रों ने उनको पागल बना दिया।
वह वशिष्ठ पागल हो गया, जिनका जमाना था; जो गणित में आर्यभट्ट व रामानुजम का विस्तार माना गया था;
वही वशिष्ठ, जिनके चलते पटना विश्वविद्यालय को अपना कानून बदलना पड़ा था। इस चमकीले तारे के खाक बनने की लम्बी दास्तान है।
डॉ.वशिष्ठ ने भारत आने पर इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कोलकाता) की सांख्यिकी संस्थान में शिक्षण का कार्य शुरू किया। कहते हैं यही वह वक्त था, जब उनका मानसिक संतुलन बिगड़ा। वे भाई-भतीजावाद वाली कार्यसंस्कृति में खुद को फिट नहीं कर पाये!



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