स्वागत अभिनन्दन धीरे धीरे।

समय जा रहा धीरे-धीरे,जैसे नाव नदी के तीरे।
उगता सूरज करे उजाला,अस्ताचल का रूप निराला।।
अनुपम छटा क्षितिज में छाई,सोयी नभ में ज्यों तरूणाई।
अरूणिम चादर खींच रहा है,अन्धकार ज्यों धीरे-धीरे।।
समय जा रहा....... https://g.co/payinvite/w2qy0a

वर्ष गया ज्यों गया दिवाकर,पुनः आ गया नया प्रभाकर।
देखकर विस्मित नील गगन है,थका नही यह सूर्य मगन है।।
जैसे पथिक कलेवर बदले,नहा नदी के गहरे तीरे।
समय जा रहा धीरे-धीरे,जैसे नाव नदी के तीरे।।

शीतल रात दिवस भी शीतल,घना कुहासा सब जगतीतल।
आकुल इन्तजार में कलियाँ,आकुल है रसाल मन्जरियाँ।।
नव पराग खोजती तितलियाँ,भौंरे बजा रहे मंजीरे।
समय जा रहा .........

वर्ष जा रहा वर्ष आ रहा,प्राची का सन्देश भा रहा।
जीवन मस्ती की शाला है,रस-आनन्द भरा प्याला है।।
सुख देकर ही सुख मिलता है,तोड़ो मिथ्या की जंजीरे।
समय जा रहा......

अभिनन्दन कर अतिथि भानु का,स्वागत कर उगते बिहान का।
नयी उमंगे कर लो जागृत,हेमपात्र में पी लो अमृत।।
सूरज तेरे द्वार खड़ा है,लेकर नयी-नयी तस्वीरे।
समय जा रहा धीरे-धीरे,जैसे नाव नदी के तीरे।।

                                                  कवि राजेन्द्र शुक्ल
                                                  बलापुर,प्रयागराज

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